Rajasthan GK - राजस्थान में किसान एवं आदिवासी आंदोलन

Peasant & Tribal movement in Rajasthan

राजस्थान में किसान व आदिवासी  आंदोलन

  19वीं शताब्दी के आरंभ में अंग्रेजों से हुई संधि के पश्चात राजस्थान के शासक बाह्य आक्रमणों, मराठो एवं पिंडारियों के आतंक से मुक्ति पाकर निर्भयता से जीवन बिताने लगे। इन्होंने अपने एशो आराम के लिए जनता पर अनेक कर लगा दिए । इससे जनता में असंतोष बढ़ता गया और 1897 ईस्वी में मेवाड़ के जागीर क्षेत्र बिजोलिया में प्रथम विस्फोट किसान आंदोलन के रूप में हुआ । इस आंदोलन ने संपूर्ण राजस्थान के कृषकों को प्रेरणा दी और अनेक कृषक आंदोलन हुए।

 राजस्थान में हुए प्रमुख किसान आंदोलन

बिजौलिया किसान आंदोलन - 1897 से 1941

बेगू किसान आंदोलन - 1921

अलवर किसान आंदोलन - 1921 

नीमूचाणा किसान आंदोलन - 4 मई 1925

मेव किसान आंदोलन - 1932

बूंदी किसान आंदोलन - 1926 

बीकानेर किसान आंदोलन - 1946 

डाबड़ा किसान आंदोलन - 1947

तोल आंदोलन - 1920

बिजौलिया किसान आंदोलन

बिजौलिया (भीलवाड़ा) में सन् 1897 से 1941 तक किसान आंदोलन हुआ।

यह  भारत का प्रथम किसान आंदोलन था।

अशोक परमार द्वारा स्थापित बिजौलिया, मेवाड़ राज्य का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।

 यह भारत का प्रथम अहिंसात्मक आंदोलन था जिसका प्रारंभ में नेतृत्व साधु सीताराम दास ने तथा 1916 से विजय सिंह पथिक ने किया था।

बिजोलिया में मुख्यता धाकड़ जाति के किसानों का निवास था।

 आंदोलन का मुख्य मुद्दा भू राजस्व निर्धारण एवं संग्रह की पद्धति थी।

 कूंता -  बिजोलिया ठिकाने में भूमि कर निश्चित करने की प्रथा ।

राव कृष्ण सिंह के समय बिजौलिया जागीर से भारी लगान के अलावा 84 प्रकार की लागतें तथा बाग- बेगारें ली जाती थी ।

 1897 ई. में बिजौलिया के किसानों ने गिरधारीपुरा नामक गांव में किसानों ने नान जी पटेल और ठाकरी पटेल को उन पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों की शिकायत करने महाराणा के पास उदयपुर भेजा । मगर महाराणा ने उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की ।

1903 में बिजौलिया के शासक कृष्ण सिंह के द्वारा एक नया चँवरी कर लगाया गया (लड़की के विवाह पर राजा को कर देना पड़ता था)। इसके विरोध में किसानों द्वारा आंदोलन किया गया अंततः चँवरी कर को समाप्त करना पड़ा।

 1906 में राव कृष्ण सिंह की मृत्यु के बाद पृथ्वी सिंह बिजौलिया का शासक बना। पृथ्वीसिंह ने जनता पर नया तलवार बँधाई कर लगाया । इसके विरोध में बिजौलिया की जनता ने विद्रोह कर दिया। लेकिन पृथ्वी सिंह ने इस कर को समाप्त नहीं किया।

 बिजौलिया किसान आंदोलन में सन 1916 ईस्वी में विजय सिंह पथिक ने भाग लिया, जिसका वास्तविक नाम भूप सिंह था ।

विजय सिंह पथिक ने 1920 में राजस्थान सेवा संघ का गठन किया तथा राजस्थान केसरी नामक अखबार का प्रकाशन किया था ।

बिजौलिया के किसानों की मांगों के औचित्य की जांच के लिए अप्रैल 1919 में न्यायमूर्ति बिंदुलाल भट्टाचार्य जांच आयोग गठित हुआ, जिसने विभिन्न कर  लाग समाप्त करने की अनुशंसा की ।

माणिक्य लाल वर्मा बिजौलिया आंदोलन के प्रमुख नेता थे । माणिक्य लाल वर्मा व विजय सिंह पथिक के मध्य वैचारिक मतभेद होने के कारण विजय सिंह पथिक इस आंदोलन से अलग हो गए ।

माणिक्य लाल वर्मा द्वारा किसानों को संगठित कर इस आंदोलन में एक नई जान फूंकी गई।फलस्वरूप मेवाड़ रियासत के प्रधानमंत्री सर टी. विजय राघवाचार्य एवं किसानों के मध्य 1941 में समझौता हो गया और आंदोलन समाप्त हो गया।

 बेगू कृषक आंदोलन

 मेवाड़ के ठिकाने बेगू के किसानों ने अपने जागीरदार के अत्याचार के विरुद्ध 1921 में आंदोलन प्रारंभ कर दिया।

लगान की ऊंची दरों के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए सन् 1921 में मेनाल नामक स्थान पर किसान एकत्रित हुए और पथिक जी ने आंदोलन की बागडोर राजस्थान सेवा संघ के मंत्री रामनारायण चौधरी को सौंपी।

किसानों ने लाग-बाग, बेगार देना ठिकाने को बंद कर दिया। जागीरदार ने आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसात्मक उपायों का सहारा लिया और उसकी सहायता हेतु सेटेलमेंट कमिश्नर ट्रेंच भी बेगू पहुंचा ।फल स्वरुप किसानों ने भूमि को पड़त रखने का निश्चय ले लिया। अंत में बेगू के ठाकुर अनूप सिंह ने विवश होकर किसानों से समझौता कर लिया और उनकी सभी मांगे मान ली। मेवाड़ सरकार ने इस समझौते को "बोल्शेविक फैसला" बताकर अनूप सिंह को नजर बंद करवा दिया। बेगू किसान आंदोलन हेतु ट्रेंच आयोग की नियुक्ति की गयी। ट्रेंच आयोग में पथिक जी पर समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगाया। परिणाम स्वरुप सरकार का दमन चक्र प्रारंभ हो गया।

 13 जुलाई 1923 को किसान गोविंदपुरा में एकत्रित हुए। सेना द्वारा उनकी घेराबंदी कर किसानों पर गोलियां चलाई गई।

 इस गोलीकांड में रूपा जी एवं कृपा जी नामक व्यक्तियों की मृत्यु हो गई एवं अनेक व्यक्ति घायल हुए । अंत में आंदोलन के कारण बने दबाव की वजह से बेगू ठिकाने में व्याप्त मनमानी के राज, ठाकुरशाही के स्थान पर बन्दोबस्त व्यवस्था लागू हुई तथा लगान की दरें भी निर्धारित की गई, अधिकांश लागें वापस ले ली गई एवं बेगार प्रथा को समाप्त कर दिया गया ।

बेगू वर्तमान में चित्तौड़गढ़ जिले में तथा मेनाल भीलवाड़ा जिले में स्थित है।

 अलवर किसान आंदोलन 

अलवर  रियासत में सूअरों को अनाज खिलाकर रोधों में पाला जाता था । यह सूअर किसान की फसल नष्ट कर देते थे ।

इनको मारने पर राज्य सरकार ने पाबंदी लगा रखी थी ।

सूअरों की समस्या के निराकरण हेतु किसानों ने आंदोलन शुरू किया । 

अंततः सरकार ने समझौता कर किसानों को सूअर मारने की इजाजत दे दी।

 नीमूचाणा किसान आंदोलन

 यह आंदोलन लाग-बाग, बेगार के विरुद्ध हुआ।

 4 मई 1925 ईस्वी को राज्य के किसानों ने लगान वृद्धि के विरुद्ध नीमूचाणा गांव में एक शांतिपूर्ण आम सभा का आयोजन किया। शांतिपूर्ण चलने वाली बैठक पर गोलियां चलाई गई । जिसमें कई लोग मारे गए।

 महात्मा गांधी ने इस कांड को जलियांवाला बाग कांड से भी अधिक विभत्स  बताया तथा इसे "Dyrism Double Distilled" की संज्ञा दी।

 बूंदी किसान आंदोलन

किसानों ने लाग-बाग, बेगार तथा ऊंची लगान के विरुद्ध 1926 में पंडित नयनू राम शर्मा के नेतृत्व में आंदोलन छेड़ा ।

डाबी नामक स्थान पर हुए किसान सम्मेलन में पुलिस ने गोलियां चला दी जिसमें नानक जी भील की मृत्यु हो गई । 

नानक जी भील झंडा गीत से क्रांति का प्रसार करते थे ।

माणिक्य लाल वर्मा ने आंदोलनकारी किसानों का साथ दिया।

 यह आंदोलन लगभग 17 वर्षों तक चलता रहा। अंत में 1946 में बूंदी रियासत की सरकार ने किसानों की मांग स्वीकार कर ली और यह आंदोलन समाप्त हुआ ।

बीकानेर किसान आंदोलन 

यह आंदोलन 1946 ईस्वी में हुआ था । इसके नेतृत्वकर्ता कुंभाराम आर्य थे।

मारवाड़ का तोल आंदोलन 1920 

जोधपुर में स्वतंत्रता आंदोलन का सूत्रपात तत्कालीन महाराजा उम्मेदसिंह के शासनकाल में वर्ष 1920 में 'तोल आंदोलन' से हुआ। उस समय सरकार के एक निर्णय के अनुसार मारवाड़ में अस्सी तोले का एक सेर हो गया, जो कि पूर्व में 100 तोले का होता था।

इस निर्णय के विरोध में मारवाड़ सेवा संघ संस्था के तत्वावधान में नागरिकों ने आंदोलन चलाया। आखिरकार तत्कालीन रियासती सरकार ने अपना आदेश बदलकर 100 तोले का एक सेर कर दिया। जोधपुर राज्य के इतिहास में सरकार के खिलाफ नागरिकों की यह पहली विजय थी।

 राजस्थान के जनजातीय आंदोलन

 गुरु गोविंद गिरी का भगत आंदोलन

 भीलों पर नियंत्रण रखने के लिए कंपनी द्वारा मेवाड़ भील कोर का गठन किया गया।

 भीलों में सुर्जी भगत और गोविंद गुरु ने जागीरदारों के अत्याचारों के खिलाफ भीलों को संगठित किया।

 श्री गोविंद गुरु का जन्म एक बंजारे परिवार में सन 1858 ईस्वी में डूंगरपुर राज्य के बांसिया ग्राम में हुआ था ।

गुरु गोविंद ने स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रेरणा से जनजातियों की सेवा का प्रण किया तथा सन 1883 ईस्वी में आदिवासियों की सेवा हेतु "सम्पसभा" की स्थापना की।

 गुरु गोविंद जनजातियों में व्याप्त सामाजिक बुराइयों को दूर करने के प्रयास एवं उनमे मूलभूत अधिकारों के प्रति चेतना जागृत करने के कारण इस वर्ग में लोकप्रिय हो गए ।

गुजरात स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर सन् 1903 में गुरु गोविंद ने सम्पसभा के प्रथम अधिवेशन का आयोजन किया , जिसमें भील तथा गरासिया आदि जनजातियों ने शराब नहीं पीने, झगड़ा ना करने एवं बच्चों को पढ़ाने की शपथ ली । 

सम्प सभा के आश्विन शुक्ल पूर्णिमा सन् 1908 के मानगढ़ पहाड़ी अधिवेशन के समय ब्रिटिश सेना ने  मानगढ़ पहाड़ी को चारों तरफ से घेरकर भीड़ पर गोलियां बरसाई , जिससे हजारों की तादाद में आदिवासी घटनास्थल पर ही मारे गए।

 गुरु गोविंद गिरी को गिरफ्तार कर आंदोलन को दबा दिया गया ।

एकी आंदोलन (भोमट भील आंदोलन) 

मोतीलाल तेजावत का जन्म 1887 ईस्वी को राजस्थान के कोलियारी ग्राम के ओसवाल परिवार में हुआ था ।

भीलों ने मोतीलाल तेजावत के नेतृत्व में भीलों को लगान और बेगार से मुक्त कराने हेतु एकी आंदोलन आरंभ किया।

 श्री तेजावत ने विजयनगर राज्य के नीमड़ा गांव में सन 1922 में लालबाग एवं बेगार के विरुद्ध भीलो का एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया।

 इस सम्मेलन में रियासत की सेना ने आदिवासियों पर गोलियां चलाई तथा 1200 आदिवासियों को मार डाला। तेजावत के पैर में गोली लगी । किंतु वे भूमिगत हो गए । वे 7 वर्षों तक भूमिगत रहे।

 तेजावत ने महात्मा गांधी की सलाह पर सन 1929 में स्वयं को ईडर की पुलिस के हवाले कर दिया।

 मोतीलाल तेजावत ने वनवासी संघ की स्थापना की।

प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु महत्वपूर्ण प्रश्न

राजस्थान में सर्वप्रथम कृषक आंदोलन बिजौलिया में प्रारंभ हुआ ।

बिजौलियाा किसान आंदोलन के प्रवर्तक साधु सीताराम दास थे।

कूंता -  बिजोलिया ठिकाने में भूमि कर निश्चित करने की प्रथा ।

चँवरी कर लड़की के विवाह पर राजा को  दिए जाने वाला कर 

बीकानेर कृषक आंदोलन के नेतृत्व कर्ता कुंभाराम आर्य थे।

बेगू किसान आंदोलन का नेतृत्व रामनारायण चौधरी ने किया।

महात्मा गांधी ने नीमूचाणा किसान आंदोलन पर हुए गोलीकांड को राजस्थान के जलियांवाला बाग हत्याकांड की संज्ञा दी।

"बोल्शेविक" संज्ञा बेगू किसान आंदोलन से संबंधित है।

मारवाड़ हितकारिणी सभा का गठन 1923 में जयनारायण व्यास ने किया।

सम्प सभा की स्थापना 1883 ईस्वी में गोविंद गिरी ने की ।

मेवाड़ राज्य के अत्याचारों के विरुद्ध एकी आंदोलन मोतीलाल तेजावत ने प्रारंभ किया।

झंडा गीत गाते समय पुलिस की गोलीबारी का शिकार हुए बूंदी किसान आंदोलन के आदिवासी क्रांतिकारी नानक जी भील थे।

बीकानेर रियासत का दुधवा खारा आंदोलन प्रसिद्ध है।

चांदमल सुराणा मारवाड़ में जन जागृति हेतु 1920 में प्रारंभ तोल आंदोलन के सूत्रधार थे।

बेगू किसान आंदोलन के गोविंदपुरा में आयोजित सभा के दौरान गोली लगने से रूपा जी एवं कृपा जी शहीद हुए।

सम्प सभा के 1908 के मानागढ़ पहाड़ी (गुजरात) के अधिवेशन के दौरान हुई गोलीबारी में हजारों लोग शहीद हुए।

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