Rajasthan GK - राजस्थान का इतिहास जानने के स्रोत

Sources of Rajasthan History 

    Coins of Jaisalmer state

राजस्थान का इतिहास जानने के स्रोत

राजस्थान के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत पुरातात्विक सामग्री , ऐतिहासिक ग्रंथ , प्रशस्तियाँ,  यात्रियों का वर्णन एवं पुरालेख आदि हैं ।

 पुरातात्विक सामग्री

पुरातत्व संबंधी सामग्री सबसे अधिक विश्वस्त है ।मूक होते हुए भी इसमें ऐसे अच्छे  ऐतिहासिक तत्व निहित है जो प्रामाणिक होते हैं । 

खोजो एवं उत्खनन से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री यथा - भग्नावशेष, खनन से प्राप्त सामग्री, सिक्के, गुहालेख , शिलालेख तथा ताम्रपत्र आदि पुरातात्विक सामग्री में सम्मिलित किए जाते हैं ।

महत्वपूर्ण शिलालेख / प्रशस्तियाँ - 

कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति

समय - 1460 

स्थान - चित्तौड़गढ़ 

रचयिता - अत्रि

इसमें मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली की जानकारी मिलती है।

यह प्रशस्ति 15वीं सदी की राजस्थान की राजनीतिक , धार्मिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को समझने के लिए बहुत उपयोगी है।

 राज प्रशस्ति 

समय - 1676 ईस्वी 

स्थान - राजसमंद 

यह राजस्थान का सबसे बड़ा शिलालेख है ।राजसमंद झील की नौ चोकी पाल की ताकों में लगे 25 काले पत्थरों पर संस्कृत में उत्कीर्ण  यह प्रशस्ति महाराज राजसिंह द्वारा स्थापित कराई गई।

पद्यमय इस प्रशस्ति के रचयिता "रणछोड़ भट्ट तैलंग" थे ।

इस प्रशस्ति में बप्पा से लेकर राजसिंह तक के शासकों की वंशावली व उपलब्धियों का वर्णन है ।

इस प्रशस्ति में राजसमंद झील का अकाल राहत कार्यों के तहत निर्माण का उल्लेख है।

रणकपुर प्रशस्ति लेख 

समय - 1439 

स्थान - जैन चौमुखा मंदिर, रणकपुर 

चौमुखा मंदिर से प्राप्त इस लेख में बप्पा से लेकर कुंभा तक के मेवाड़ नरेशों का उल्लेख मिलता है ।

इसमें कुंभा को विजेता के साथ-साथ एक सफल प्रशासक, धर्म परायण , न्याय प्रिय एवं प्रजापालक बताया गया है ।

 बड़ली का शिलालेख

समय - 443 ई.पू.

यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि का प्रथम शिलालेख है  ।इस शिलालेख में अजमेर एवं माध्यमिका (चित्तौड़) में जैन धर्म का प्रसार होना बताया गया है।

बिजौलिया शिलालेख 

समय - 1170 ई. 

स्थान - बिजौलिया (भीलवाड़ा)

यह शिलालेख बिजौलिया के पार्श्वनाथ मंदिर की दीवार पर उत्कीर्ण है।

 यह शिलालेख जैन श्रावक लोलाक द्वारा मंदिर के निर्माण की स्मृति में बनवाया गया था।

 इसमें सांभर व अजमेर के चौहान वंश की जानकारी मिलती है ।

इस शिलालेख में चौहानों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से बताई गई है।

एकलिंग जी मंदिर प्रशस्ति 

समय - 1488 ईस्वी 

 स्थान - चित्तौड़गढ़

यह प्रशस्ति महाराणा रायमल द्वारा मंदिर के जीर्णोद्धार के समय उत्कीर्ण की गई है ।

इसमें मेवाड़ के शासकों की वंशावली, तत्कालीन समाज की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक स्थिति एवं नैतिक स्तर की जानकारी दी गई है।

प्रमुख दान पत्र एवं ताम्रपत्र

दान पत्रों में राजाओं, रानियों एवं समस्त व्यापारी वर्ग द्वारा दान के रूप में दी जाने वाली भूमि आदि का उल्लेख किया जाता है। स्थाई अनुदानों को तांबे की चद्दर पर उत्कीर्ण करवा दिया जाता था, जिन्हें ताम्रपत्र कहा जाता है।

 इनसे तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था एवं राजवंशों  के वंश क्रम को निर्धारित करने में सहायता मिलती है।

 सिक्के 

राजस्थान की विभिन्न रियासतों में प्रचलित सिक्के-

झाड़शाही व मोहम्मद शाही सिक्के - जयपुर 

विजय शाही, भीम शाही सिक्के - जोधपुर 

स्वरूप शाही, चांदोड़ी सिक्के - मेवाड़ 

शाह आलमी सिक्के - मेवाड़ 

अखेशाही सिक्के - जैसलमेर 

अखयशाही, रावशाही सिक्के - अलवर 

उदयशाही सिक्के - डूंगरपुर

गजशाही सिक्के - बीकानेर 

गुमानशाही सिक्के - कोटा 

मदनशाही सिक्के - झालावाड़ 

मुहम्मदशाही - जैसलमेर 

रामशाही सिक्के - बूंदी 

सालिमशाही सिक्के - बांसवाड़ा 

तमंचाशाही सिक्के - धौलपुर 

कलदार सिक्के - ब्रिटिश काल में राजस्थान में                                 प्रचलित सिक्के 

पुरालेख स्रोत 

प्राचीन घरानों एवं सरकारी विभागों में पाई जाने वाली सामग्री यथा पट्टे, फाइलें, बहिया,  दस्तावेज आदि को पुरालेख स्रोत के नाम से पुकारा जाता है ।राजस्थान में पुरालेख लेख सामग्री निम्न पुरालेख संग्रहालय में उपलब्ध है । 

राजस्थान राज्य अभिलेखागार का मुख्यालय बीकानेर में है एवं उसकी शाखाएं जयपुर, कोटा, उदयपुर, अलवर, भरतपुर तथा अजमेर में स्थित है। 

पुरालेख स्रोत सामग्री राज्य के जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर एवं बीकानेर पुरालेख संग्रहालय में संग्रहित है।


 जयपुर का पुरा लेख संग्रहालय 

खरीता - एक शासक द्वारा दूसरे शासक को भेजे जाने वाला पत्र ।

बहियाँ -  राजा के दैनिक कार्यों के संचालक का माध्यम बहियाँ होती थी।

खरीता बही - राजा को प्राप्त होने वाले महत्वपूर्ण पत्रों की नकल खरीद  बही में की जाती थी।

हकीकत बही - राजा के शासकीय दैनिक क्रियाकलापों का उल्लेख हकीकत बही में किया जाता था।

परवाना - शासक द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को लिखे जाने वाला पत्र ।

फरमान, रुक्के, निशान - यह पत्र शासक शाहीवंश के लोगों के नाम, मनसबदारों के नाम या विदेशी शासकों के नाम भेजे जाते थे।

हुकूमत री बही - राजा के शासकीय आदेशों को हुकूमत री बही में लिखा जाता था।

 विवाह बही - शाही परिवार के विवाह संबंधी आलेख विवाह बही में लिखे जाते थे।

 दस्तूर कौमवार तथा शियाह हुजूर - राजपरिवार की आवश्यकताओं  से संबंधित पदार्थों के खर्चो का लेखा-जोखा शियाह हुजूर एवं दस्तूर में कौमवार किया जाता था ।

कमठाना बही - राजकीय महलों, भवनों पर होने वाले खर्चे का लेखा-जोखा कमठाना बही में किया जाता था ।

अखबारात -मुगल  शासकों द्वारा प्रकाशित दैनिक समाचार पत्रों का समूह अखबारात कहलाता था।

 जोधपुर का पुरालेख संग्रहालय

 हकीकत बही - राजाओं के कार्यों, यात्राओं, यातायात के साधनों, आय के साधनों एवं त्योहारों आदि के ज्ञान के साधन हकीकत बहियााँ होती थी।

पट्ट बही - जोधपुर के शासकों की दान प्रियता, उदारता एवं धार्मिक सहिष्णुता की जानकारी पट्ट बहियों से होती है ।

ब्याह बही - राज परिवारों के विवाह संबंधों और तत्कालीन रीति रिवाजों की जानकारी ब्याह बही से मिलती है ।

खरीता बही - राज्य के शासकों के असली पत्रों को खरीता बही में सुरक्षित रखा जाता था।

ओह्या बही - जोधपुर के शासकों के शाही आदेशों एवं भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों की जानकारी  ओह्या बही  में मिलती है।

 कोटा का पुरालेख संग्रहालय 

तल्की - शासकों की आज्ञाए तथा अन्य शासकों, सामंतों एवं अन्य पदाधिकारियों को भेजे गए पत्रों की नकलों की जानकारी तल्की से प्राप्त होती है ।

 मुल्की - इससे राज्य की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है ।

जमाबंदी - इसमें राजस्व संबंधी पत्रों की जानकारी मिलती है।


 उदयपुर का पुरा लेख संग्रहालय 

 उदयपुर के पुरालेख संग्रहालय में देव स्थान का रिकॉर्ड , सिलहखाना का हिसाब एवं दफ्तर के कागजात आदि पुरालेखों का संग्रह है।

 इनसे उदयपुर के तत्कालीन शासकों द्वारा किए गए कार्यों, धार्मिक प्रतिष्ठानों एवं दानकार्यों  आदि के बारे में जानकारी मिलती है।


 इसके अतिरिक्त राजस्थान के इतिहास जानने के अन्य स्रोतों  में स्थापत्य एवं साहित्य भी प्रमुख है।


प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु महत्वपूर्ण तथ्य

 भाब्रू का शिलालेख बैराठ (जयपुर ) से संबंधित शिलालेख है जो वर्तमान में कोलकाता (पश्चिम बंगाल) के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

 राजस्थान में रियासत काल में राज्य की सेना द्वारा किसी गांव के पास पड़ाव डालने पर ,उसके भोजन के लिए गांव के लोगों सेेेेे वसूल की जानेे वाली लाग खिचड़ी लाग कहलाती थी।

सुन्धा  अभिलेख जालौर जिले में स्थित है।

 जयपुर राज्य की ख्यालखाना अभिलेख श्रंखला से आतिशबाजी बनाने की प्रक्रिया का पता चलता है।

लाणी नामक टीले से  रासायनिक क्रिया द्वारा प्राप्त साजी  (क्षार) के उत्पादन का उल्लेख बीकानेर राज्य के अभिलेखों से मिलता है ।

 कासीन्द्रा  (सिरोही), अहीर  (जालौर)व कतिजेसर  ( डूंगरपुर) में गधैया सिक्के पाए गए है।

जैसलमेर के महाराजा अखैसिंह द्वारा अखैशाही सिक्के जारी किए गए ।

झाड़शाही सिक्के जयपुर राज्य से संबंधित थे।

रणकपुर प्रशस्ति में बापा से कुंभा तक की वंशावली व तत्कालीन मुद्रा नाणक की जानकारी प्राप्त होती है।

चीरवा का शिलालेख -  1273 के शिलालेख में बप्पा रावल के वंशजों की कीर्ति का उल्लेख मिलता है।

वह प्रशस्ति जो विश्व में प्राप्त शिलालेखों में सबसे बड़ी है तथा 17वीं शताब्दी की सामाजिक धार्मिक व्यवस्था जानने हेतु अत्यंत उपयोगी है - राज प्रशस्ति 1676  ई.

मेवाड़ के गुहिल वंश की जानकारी साँभौली के शिलालेख  से मिलती है ।

ब्राह्मी लिपि का प्रथम शिलालेख  बड़ली का शिलालेख है।

झाड़शाही व मोहम्मद शाही सिक्के जयपुर रियासत में चलते थे।

 कुंभलगढ़ प्रशस्ति के रचयिता महेश थे।


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