Rajasthan GK - राजस्थान के राजाओं के उपनाम व उपाधियां

Titles and Nicknames of Kings of Rajasthan 


राजस्थान के राजाओं के उपनाम एवं उपाधियाँ 

मिहिर भोज - यह इतिहास में भोज प्रथम एवं आदि वराह के नाम से प्रसिद्ध है।

 राव मालदेव - फारसी इतिहासकार फरिश्ता ने राव मालदेव को हशमत वाला राजा कहा था। चारणों ने राव मालदेव को हिंदू बादशाह कहा है।

 राव चंद्रसेन - मारवाड़ का प्रताप के उपनाम से प्रसिद्ध।

राव उदय सिंह - राव चंद्रसेन के भाई । इन्हें मोटा राजा उदयसिंह के उपनाम से जाना जाता है ।

राव लूणकरण - यह अपनी  दान शीलता के कारण इतिहास में कलयुग के कर्ण के नाम से विख्यात है।

महाराजा रायसिंह - मुंशी देवी प्रसाद ने इनकी दानशील प्रवृत्ति के कारण इन्हें राजपूताने का कर्ण कहा।

महाराजा कर्ण सिंह - बीकानेर के शासक । औरंगजेब ने इन्हें जांगलधर बादशाह की उपाधि से नवाजा।

 महाराजा अनूप सिंह - इनकी दक्षिण में मराठों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से खुश होकर औरंगजेब ने इन्हें महाराजा एवं माही भरातिव  का खिताब देकर सम्मानित किया।

 महाराजा सावंत सिंह - किशनगढ़ के शासक । यह नागरी दास के नाम से प्रसिद्ध हुए ।

 विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) - विग्रहराज विद्वानों का आश्रय दाता होने के कारण कवि बांधव नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने हरिकेलि नाटक की रचना की।

पृथ्वीराज तृतीय - अजमेर के प्रतापी शासक जिन्हें राय पिथौरा के नाम से जाना जाता है ।

बापा रावल - इन्हें काल भोज एवं बप्पा रावल के नाम से भी जाना जाता है ।

 राणा हम्मीर - मेवाड़ के उद्धारक के रूप में प्रसिद्ध। इन्हें महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित रसिकप्रिया टीका में तथा कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति में विषम घाटी पंचानन की संज्ञा दी गई है ।

राव चूड़ा - राणा लाखा का पुत्र । इन्हेंं भीष्म पितामह कहा जाता है  । इन्होंने अपने पिता के लिए रणमल की बहन हंसा बाई से विवाह करने से इंकार कर दिया ।

महाराणा कुंभा - महाराणा मोकल के पुत्र, जिन्हें हिंदू  सुरताण  तथा अभिनव भरताचार्य भी कहा जाता है। राणा कुंभा को स्थापत्य कला का जनक कहां जाता है। कीर्ति स्तंभ शिलालेख में महाराणा कुंभा की महाराणा , राजगुरु, दानगुरु , हालगुरू आदि उपाधियों का उल्लेख मिलता है।उसने महाराजाधिराज, राय रायण , राणो रासो (साहित्यकारों/ विद्वानों का आश्रय दाता) , परम गुरु आदि  उपाधियां धारण कर रखी थी ।

 महाराणा कुंभा ने राजगुरु की उपाधि धारण की क्योंकि उसने राजनीति के सिद्धांतों को सिद्धहस्त कर लिया था।

उसने दान गुरु की उपाधि धारण की क्योंकि वह दान देने में अपना सानी नहीं रखता था।

हाल गुरु की उपाधि (पहाड़ी दुर्गों का स्वामी )धारण की क्योंकि वह अपने शासनकाल का सर्वोच्च शासक था।

 संग्राम सिंह (महाराणा सांगा) - राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष कहा जाता है ।

महाराणा प्रताप - वनवासियों में महाराणा प्रताप कीका (छोटा बालक) नाम से लोकप्रिय थे।

 राजा मानसिंह प्रथम  - अकबर ने इन्हें फर्जंद एवं राजा की उपाधि प्रदान की ।

मिर्जा राजा जय सिंह -  राजा जयसिंह ने जहांगीर , शाहजहां, औरंगजेब तीनों मुगल सम्राट के साथ कार्य किया । शाहजहां ने 1638 ईस्वी में इन्हें मिर्जा राजा की उपाधि प्रदान की ।

सवाई जयसिंह द्वितीय - मुगल शासक औरंगजेब ने इन्हें सवाई की उपाधि से नवाजा । यह अंतिम हिंदू राजा थे जिन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया ।

 सवाई प्रताप सिंह - यह ब्रज निधि नाम से काव्य रचना करते थे ।

 राजा सूरजमल - जाट राजा सूरजमल को जाटों का प्लेटो  व अफलातून कहा जाता है।

 महाराजा गंगा सिंह - बीकानेर के पूर्व महाराजा गंगा सिंह को आधुनिक भारत का भागीरथ कहा जाता है । यह श्रेय उन्हें गंगनहर लाने के लिए दिया जाता है।

 

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

राव मालदेव की पत्नी उमादे इतिहास में रूठी रानी के नाम से प्रसिद्ध है।

 सातवीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भीनमाल (जालौर) की यात्रा की। इन्हें यात्रियों में राजकुमार कहा जाता है।

कर्नल जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास का पितामह कहा जाता है।

महाराणा लाखा के पुत्र चूड़ा ने मेवाड़ का राज्य वृद्ध महाराणा लाखा की पत्नी हंसा बाई की होने वाली संतान को देने की भीष्म प्रतिज्ञा की। इसलिए उन्हें राजस्थान का भीष्म पितामह कहा जाता है।

 फर्ग्यूसन ने महाराणा कुंभा द्वारा निर्मित विजय स्तंभ की तुलना रोम की टार्जन कृति से की है।

 राव चंद्रसेन पहला राजपूत शासक था जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और आजीवन संघर्ष की नीति जारी रखी।। इसीलिए राव चंद्रसेन को मारवाड़ का प्रताप कहा जाता है। राव चंद्रसेन ने 18 वर्ष तक मारवाड़ की रक्षा के लिए अकबर से युद्ध किया ।

 राणा सांगा को सैनिकों का भग्नावशेष कहा जाता है। राणा सांगा ने सौ युद्ध में भाग लिया। उनके शरीर पर तलवार, बरछी तथा भाले के 80 घावों के चिह्न थे। उनकी एक आंख , एक टांग युद्धों में नष्ट हो चुकी थी। कर्नल टॉड ने उन्हें सिपाही का अंश (सैनिकों का भग्नावशेष) कहा है।

 उदयपुर राजवंश को हिंदूआ सूरज  कहते हैं।

 महाराणा कुंभा द्वारा रचित रसिकप्रिया में महाराणा कुंभा को छाप गुरु, नरपति, अश्वपति , गणपति जैसी उपाधियां सैनिक योग्यता एवं युद्ध पद्धति में पारंगत होने के लिए दी गई है।

 कीर्ति स्तंभ शिलालेख में महाराणा कुंभा की महाराणा, राजगुरु (राजनीति में दक्ष), दानगुरु (महादानी), हालगुरु, परमगुरु आदि उपाधियों का उल्लेख मिलता है।


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