Rajasthan GK -Famous Lok Devta of Rajasthan

Famous Lok Devta of Rajasthan 


     रामदेव जी

राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता

 लोक देवतादेवी से तात्पर्य ऐसे महापुरुषों व महान स्त्रियों से है जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारण व लोको उपकारी कार्यों के कारण देवीय अंश के रूप में स्थानीय जनता द्वारा स्वीकारे गए है। इनके जन्म दिवस अथवा समाधि की तिथि को मेले लगते हैं । लोक देवियों को मातृ शक्ति के रूप में पूजा जाता रहा है।

राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता इस प्रकार हैं -

रामदेव जी   -  कृष्ण के अवतार ,रामसापीर, पीरों के पीर

गोगाजी      -  सांपों का देवता, जाहर पीर

तेजाजी      -  नागों के देवता, काला और बाला का देवता

हड़बूजी 

पीपाजी

पाबूजी            -  ऊॅटों के देवता ,लक्ष्मण का अवतार

देवनारायण जी -  विष्णु का अवतार

भूरिया बाबा / गौतम बाबा या गौतमेश्वर 

वीर कल्ला जी  -  चार हाथों वाले देवता,                                                     शेषनाग का अवतार

झुंझार जी 

देव बाबा 

मल्लीनाथ जी

बाबा तल्ली नाथ जी

बिग्गा जी

मामा देव 


 रामदेव जी

जन्म - ऊँडूकासमेर, बाड़मेर वि.स. 1409 से 1462  के मध्य

पिता का नाम अजमाल एवं माता का नाम मेणादे  था।

समाधि-  रुणेचा या रामदेवरा (पोकरण ,जैसलमेर) 

मेला- प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक  

रामदेव जी को हिंदू कृष्ण के अवतार के रूप में है मुस्लिम रामसा पीर के रूप में पूजते हैं।

रामदेव जी का प्रतीक चिन्ह - चरण चिन्ह (पगलिये) हैं।

रामदेव जी के मेले का प्रमुख आकर्षण तेरहताली नृत्य है जिसे कामड़ जाति की स्त्रियां करती है। 

रामदेव जी लोक देवताओं में एकमात्र कवि माने जाते हैं ।चौबीस  बाणियाँ इनकी प्रमुख रचना है ।  

इन्होंने कामड़ पंथ को प्रारंभ किया ।

मसूरिया (जोधपुर),  बिराँटियाँ (अजमेर) ,सुरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़) में इनके मंदिर स्थित है ।

इनके मेघवाल भक्त रिखिया कहलाते हैं। 

रामदेव जी के नाम पर रात्रि जागरण किया जाता है जिसे जम्मा कहा जाता है ।   

 इनकी प्रमुख शिष्या डाली बाई ने इनसे 1 दिन पूर्व जल समाधि ली थी। 

रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ था ।

 रामदेव जी पीरों के पीर कहलाते हैं।

 रामदेव जी धार्मिक सद्भावना के लिए जाने जाते हैं।


 गोगाजी

यह मारवाड़ के पंच पीरों में प्रमुख थे।

जन्म ददरेवा चुरु में 1003 ईस्वी में    

ये चौहान राजपूत थे ।

इनके पिता का नाम जेवर सिंह तथा माता का नाम बाछल था।  

गोगाजी को जाहर पीरसांपों का देवता भी कहा जाता है।                                                                         

गोगा जी की स्मृति में भाद्रपद कृष्ण नवमी(गोगा नवमी) को गोगामेड़ी (हनुमानगढ़)में मेला भरता है।

गोगाजी का प्रतीक घोड़ा है ।

गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) व ददरेवा (चुरु) प्रमुख स्थल है । 

किसान खेत जोतने से पूर्व हल एवं हाली को गोगा राखड़ी बांधते हैं। 

ददरेवा को शीष मेढ़ी एवं गोगामेडी को धुरमेड़ी कहते हैं ।

गोगाजी की ओल्डी सांचौर (जालौर )में इनका मंदिर है ।

गोगा जी ने गौ रक्षा एवं मुस्लिम आक्रांताओं (महमूद गजनवी) से देश की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर दिए।


 तेजाजी

 जन्म नागवंशी जाट परिवार में 1074 में खड़नाल गांव (नागौर) में हुआ। 

 पिता का नाम ताहड़ जी माता का नाम राजकुवरी था । 

तेजाजी का भोपा घोड़ला कहलाता है। यह सर्प  के विष से लोगों को मुक्ति दिलाता है।

यह गायों को मेर के मीणाओं से मुक्त कराने के प्रयास में शहीद हुए ।

इनकी नागों के देवता के रूप में पूजा होती है। 

तेजाजी के पुजारी घोडला व चबूतरे को थान कहा जाता है।

तेजाजी की घोड़ी का नाम लीलण था। 

परबतसर गांव (नागौर) में प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल दशमी को पशु मेला भरता है।

सर्प एवं कुत्ते के काटने पर इनकी पूजा होती है । 

इनके थान अजमेर जिले के सुरसुरा , ब्यावर,  सेंदरिया व भावता में है ।

सेंदरिया में नाग देवता ने इन्हें डसा था।

सुरसुरा में इन्हें वीरगति प्राप्त हुई थी  ।

यह विशेषतः अजमेर जिले के लोक देवता हैं।


 हड़बूजी

 वीर योगी हड़बूजी मुंडेल नागौर के महाराजा सांखला के पुत्र और बाबा रामदेव के मौसेरे भाई थे ।

हड़बूजी योगी, सन्यासी और वीर योद्धा थे ।

हड़बूजी का प्रमुख स्थान बैंगटी गाँव (फलोदी) है।

हड़बूजी के पुजारी सांखला राजपूत होते हैं ।

इनके मंदिर में श्रद्धालु भक्त हड़बूजी की गाड़ी की पूजा करते हैं।


 पाबूजी

जन्म - कोलू गांव (फलौदी, जोधपुर) 1239 में ।

यह मारवाड़ के राठौड़ वंश से संबंधित थे ।

यह ऊँटों के देवता के रूप में भी प्रसिद्ध है।

राजस्थानी लोक साहित्य के पाबू जी को लक्ष्मण जी का अवतार मानते है। 

पाबूजी का प्रतीक चिन्ह भाला लिए अश्वारोही है।

पाबूजी का प्रमुख उपासना स्थल कोलू (फलौदी) है जहां प्रतिवर्ष मेला भरता है ।

यह राईका, थोरी ,मेहर (मुस्लिम)जाति के आराध्य हैं । 

यह प्लेग रक्षक भी माने जाते हैं ।

इनसे संबंधित गाथा गीत पाबूजी के पावडे नायक एवं रेबारी जाति के लोग माठ वाद्य के साथ गाते हैं ।

इनका मेला चैत्र अमावस्या को भरता है ।

पाबूजी की फड़ थोरी नामक जाति के भोपा द्वारा रावणहत्था वाद्य के साथ गाई जाती है।

 

देवनारायण जी  देव जी

 यह नागवंशी गुर्जर बगड़ावत वंश के थे।

इनका जन्म 1243 ईस्वी में हुआ। 

इनका मूल नाम उदय सिंह था ।

गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी को विष्णु का अवतार मानते हैं। 

देवनारायण जी की फड गुर्जर भोपा द्वारा जंतर वाद्य यंत्र के साथ बांची  जाती है।

इनका मुख्य मंदिर गोठा दड़ावता  (आसींद,भीलवाड़ा) में है । अन्य मंदिर देवमाली (ब्यावर, अजमेर) , देव धाम जोधपुरिया (टोंक), देव डूंगरी (चित्तौड़गढ़) में है।


 भूरिया बाबा (गौतमेश्वर)

भूरिया बाबा शौर्य  के प्रतीक हैं तथा मीणा जाति इन्हें इष्ट देव के रूप में मानती है ।

मीणा जाति के लोग गौतमेश्वर की झूठी कसम कभी नहीं खाते हैं।

 

वीर कल्ला जी

वीर कल्लाजी राठौड़ का जन्म मेड़ता में हुआ।

इनके पिता का नाम आससिंह था।

भक्ति मति मीराबाई इनकी बुआ थी ।

कल्ला जी की ख्याति चार हाथ वाले देवता के रूप में हुई  है।

इस पराक्रमी योद्धा को योगाभ्यास एवं जड़ी बूटियों का पर्याप्त ज्ञान था । 

चित्तौड़ के तीसरे शाके में अकबर के विरुद्ध लड़ते हुए यह वीरगति को प्राप्त हुए।


  झुंझार जी

 झुंझार जी का जन्म सीकर जिले के इमलोहा गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था ।   

सीकर जिले के स्थालोदड़ा गांव में प्रति वर्ष रामनवमी को मेला भरता है । 

झुंझार जी का स्थान प्रायः खेजड़ी के पेड़ के नीचे होता है।


देव बाबा

देव बाबा का मंदिर भरतपुर जिले के नगला जहाज नामक गांव में स्थित है।

आप गुर्जरों के पालनहार एवं कष्ट निवारक के रूप में लोकप्रिय हो गए थे।

इन्हें पशु चिकित्सा का ज्ञान प्राप्त था ।


मल्लीनाथ जी

मल्लिनाथ जी का जन्म  1358 ईस्वी को मारवाड़ में हुआ था ।

मल्लिनाथ जी ने 1378 ईस्वी में मालवा के सूबेदार निजामुद्दीन की सेना को पराजित किया ।

मल्लिनाथ जी की याद में तिलवाड़ा (बाड़मेर)में पशु मेला भरता है।

इनकी पत्नी रूपादे का मंदिर मालाजाल गांव (बाड़मेर) में स्थित है।


बाबा तल्ली नाथ जी

 बाबा तल्ली नार्थ जीके बचपन का नाम राठौड़ गांगदेव तथा इनके पिता का नाम वीरमदेव था ।

इनके गुरु का नाम जलंधर नाथ था ।

यह स्वभाव से प्रकृति प्रेमी तथा रण कौशल में निपुण थे।

इन्होंने शेरगढ़ (जोधपुर) ठिकाने पर शासन किया।

तल्ली नाथ ने सदैव पेड़ पौधों की रक्षा व संवर्धन पर बल दिया इसलिए तल्लीनाथ के पूजा स्थल पंचमुखी पहाड़ पर कोई पेड़ पौधा नहीं काटता है ।

यह जालौर के लोक देवता माने जाते हैं।


 बिग्गाजी

 बिग्गा जी का जन्म बीकानेर के रीढ़ी गांव के एक जाट परिवार पर हुआ था।

बिग्गा जी ने मुस्लिम लुटेरों से गाय छुड़ाते समय अपना बलिदान दे दिया था। 

राजस्थान में जाखड़ समाज बिग्गा जी को अपना कुलदेवता मानता है।


 पीपा जी



पीपाजी गागरोन (झालावाड़) के खींची राजपूत शासक थे।  

इनका जन्म 1425 में हुआ था ।

पीपाजी रामानंद जी के शिष्य थे। 

पीपाजी ईश्वर प्राप्ति के लिए  गुरु को आवश्यक मानते थे  तथा भक्ति को  मोक्ष प्राप्ति का  प्रमुख साधन मानते थे ।

पीपा जी की समाधि पीपा धाम (झालावाड़) में है। 

इनका एक मंदिर समदड़ी गांव (बाड़मेर) में है। 

दर्जी जाति के लोग इन्हें अपना इष्ट देवता मानते हैं।

 

मामा देव

 यह एक ऐसे विशिष्ट लोग देवता हैं जिनकी मिट्टी व पत्थर की मूर्तियां नहीं होती बल्कि लकड़ी का एक विशिष्ट व कलात्मक तोरणहोता है। 

इसे गांव के बाहर की मुख्य सड़क पर प्रतिष्ठित किया जाता है ।

यह मुख्यतः बरसात के देव हैं।

इन्हें प्रसन्न करने के लिए भैंसे की बलि दी जाती है।


 प्रतियोगिता परीक्षा हेतु विशेष तथ्य            

 मारवाड़ के पांच लोक देवताओं पाबूजी ,रामदेव जी , हड़बूजी, गोगा जी एवं मांगलिया मेहाजी को पंच पीर माना गया है ।

वीर कल्लाजी - चार हाथ वाले देवता     

वीर कल्लाजी - अकबर से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।

हड़बूजी की गाड़ी की पूजा की जाती है।        

रामदेव जी के पगलिये पूजे जाते हैं  ।

पाबूजी ऊॅटो के देवता है।     

रामदेव जी पीरों के पीर कहलाते हैं  ।     

रामदेव जी लोक देवताओं में एकमात्र कवि माने जाते हैं। 

      

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