Rajasthan GK - राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज

Important Rituals of Rajasthan 

      कांकन डोरा

राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज

 सोलह संस्कार 

मानव शरीर को स्वस्थ दीर्घायु और मन को शुद्ध और अच्छे संस्कारों वाला बनाने के लिए गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक निम्नलिखित सोलह संस्कार अनिवार्य माने गए हैं - 

गर्भाधान - गर्भाधान के पूर्व उचित काल और आवश्यक धार्मिक क्रियाएं ।

पुंसवन - गर्भ में स्थित शिशु को पुत्र का रूप देने के लिए देवताओं की स्तुति कर पुत्र प्राप्ति की याचना करना पुंसवन संस्कार कहलाता है।

सीमंतोन्नयन - गर्भवती स्त्री को मंगलकारी शक्तियों से बचाने के लिए किया जाने वाला संस्कार सीमंतोन्नयन संस्कार कहलाता है।

जात कर्म - बालक के जन्म पर किया जाने वाला संस्कार जात कर्म कहलाता है।

नामकरण - शिशु का नाम रखने के लिए जन्म के 10वें अथवा 12वें दिन किया जाने वाला संस्कार नामकरण संस्कार कहलाता है।

निष्क्रमण - जन्म के चौथे मास में बालक को पहली बार घर से निकाल कर सूर्य और चंद्र के दर्शन कराना निष्क्रमण कहलाता है।

अन्नप्राशन - जन्म के छठे मास में बालक को पहली बार अन्न का आहार देने की क्रिया अन्नप्राशन कहलाती है ।

चूड़ाकर्म - शिशु के पहले या तीसरे वर्ष में सिर के बाल पहली बार मुडवाने पर किया जाने वाला संस्कार। इसे जडुला उतारना भी कहते हैं।

कर्णवेध - शिशु के तीसरे एवं पांचवें वर्ष में किया जाने वाला संस्कार जिसमें शिशु के कान बींधे जाते हैं।

विद्यारंभ - देवताओं की स्तुति कर गुरु के समक्ष बैठकर अक्षर ज्ञान कराने हेतु किया जाने वाला संस्कार विद्यारंभ कहलाता है ।

उपनयन - उपनयन संस्कार द्वारा बालक को शिक्षा के लिए गुरु के पास ले जाया जाता था। ब्रह्मचर्य आश्रम इसी संस्कार से प्रारंभ होता था इसे यज्ञोपवित संस्कार भी कहते हैं। पहले ब्राह्मणों ,क्षत्रिय और वैश्य को ही उपनयन का अधिकार था ।

वेदारंभ - वेदों के पठन-पाठन का अधिकार लेने हेतु किया जाने वाला संस्कार।

केशांत या गोदान -  सामान्यतः 16 वर्ष की आयु में किया जाने वाला संस्कार जिसमें ब्रह्मचारी को अपने बाल कटवाने पढ़ते थे। अब यह संस्कार विलुप्त हो चुका है ।

समावर्तन  या दीक्षांत संस्कार - शिक्षा समाप्ति पर किया जाने वाला संस्कार । जिसमें विद्यार्थी अपने आचार्य को गुरु दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करता था तथा स्नान करके घर लौटता था । स्नान के कारण ही ब्रह्मचारी को स्नातक कहा जाता था।

विवाह संस्कार - गृहस्थ आश्रम में प्रवेश के अवसर पर किया जाने वाला संस्कार विवाह संस्कार कहलाता है।

अंत्येष्टि - यह मृत्यु पर किया जाने वाला संस्कार है।

 वैवाहिक रीति रिवाज 



सगाई - विवाह प्रक्रिया के प्रारंभ में जब किसी लड़की के लिए लड़का रोका जाता है तो उसे सगाई की रस्म कहते हैं।

टीका - इसके अंतर्गत लड़की वाला अपनी प्रतिष्ठा के अनुकूल नगद राशि व वस्त्र आदि लड़के के यहां भिजवाता है जिसे लड़के का पिता अपने परिवार एवं मित्र गणों की उपस्थिति में ग्रहण करता है ।

लग्न पत्रिका - वर व वधू पक्ष की ओर से विवाह का शुभ मुहूर्त तय किया जाता है । विवाह की तिथि के 1 माह या 15 दिन पूर्व लड़की का पिता वर के पिता को रंग बिरंगे कागज में लग्न पत्रिका भेजता है जिसमें फेरों के समय का उल्लेख होता है।

कुमकुम पत्रिका - वर वधु पक्ष द्वारा अपने सगे संबंधियों, मित्रों आदि को विवाह के अवसर पर पधारने के लिए केसर व कुमकुम से सुसज्जित निमंत्रण पत्र भेजते हैं जिसमें वैवाहिक कार्यक्रम का तिथि वार उल्लेख होता है। राजस्थान में पहली कुमकुम पत्रिका रणथम्भौर में स्थित गणेश जी को भेजने की प्रथा है ।

विनायक पूजा -  विवाह से एक-दो दिन पूर्व दोनों पक्ष अपने यहां शुभ मुहूर्त में गणेश जी की घर के एक कक्ष में स्थापना करते हैं तथा पूजन करते हैं ।इस अवसर पर गीत गाए जाते हैं एवं मांगलिक कार्य को सानंद संपन्न कराने की प्रार्थना की जाती है ।

बरी पड़ला - वर के घर से वधू के घर कपड़ा, आभूषण आदि तैयार करके ले जाने को बरी तथा मिष्ठान ,मेवा आदि ले जाने को पडला कहते हैं । यह बरी पडला  विवाह तिथि को बरात के साथ ले जाया जाता है ।बरी में ले जाए गए वस्त्र आभूषणों को वधु विवाह के समय धारण करती है।

कांकन डोरा - काकन डोरा विवाह के 2 दिन पूर्व वर पक्ष द्वारा मोली के दो कांकन डोरे बनाए जाते हैं एक को वर बांधता है तथा दूसरे कांकन डोरा वधू के लिए बरी पडला के साथ भेजा जाता है।

 बिंदोरी - विवाह के 1 दिन पूर्व वर वधू की बिंदोरी निकाली जाती है। जिसमें स्त्रियां मांगलिक गीत गाते हुए उन दोनों को गांव या मोहल्ले में घूमाते हैं ।

मोड बांधना - विवाह के दिन सुहागिन स्त्रियां वर का उबटन से स्नान कराकर सिर पर सेहरा बांधती है ।इसके उपरांत वर घोड़ी पर सवार होकर मंदिर जाता है ।लौटते समय माता अपने पुत्र को अपने स्तन से दूध पिलाती हैं। 

सामेला - वर वधू के घर पहुंचने पर वधू का पिता अपने संबंधियों के साथ वर पक्ष का स्वागत करता है इसे सामेला कहते हैं ।

तोरण - जब वर बारातियों के साथ वधु के द्वार पर पहुंचता है तो वधू पक्ष की स्त्रियों द्वारा मांगलिक गीत गाए जाते हैं इस अवसर पर दूल्हा घोड़ी पर बैठे छड़ी या तलवार से 7 बार तोरण को छूता है ।तोरण लकड़ी का बना मांगलिक चिह्न होता है जिस पर गणेश जी का चित्र होता है। 

फेरे (सप्तपदी) - इसके अंतर्गत वर-वधू एक दूसरे का हाथ पकड़कर आदमी के समक्ष प्रतिज्ञा करते हैं एवं अग्नि के चारों और सात फेरे लेते हैं शेरों के पहले कन्यादान भी किया जाता है ।

पहरावणी (रंगबरी) - बारात विदा करते समय प्रत्येक बाराती तथा वर-वधू को यथाशक्ति धन व उपहार आदि दिए जाते हैं जिसे पहरावणी कहते हैं ।

मुकलावा या गौना - विवाहिता अव्यस्क कन्या को व्यस्क होने पर उसे अपने ससुराल भेजना मुकलावा करना या गौना कहलाता है।

 बढ़ार - विवाह के दूसरे दिन आयोजित किया जाने वाला सामूहिक प्रीतिभोज बढ़ार कहलाता है। इसमें वर पक्ष अपने सगे संबंधियों को भोजन पर आमंत्रित करता है। आजकल इसे आशीर्वाद या रिसेप्शन समारोह कहते हैं।

बिनोटा - दूल्हा दुल्हन के विवाह की जूतियां को बिनोटा भी कहा जाता है।


 दु:खद अवसरों के रीति-रिवाज

बैकुंठी - मृतक को श्मशान ले जाने के लिए बांस या लकड़ी की अर्थी तैयार की जाती है, जिसे बैकुंठी कहते हैं।

बखेर - किसी वयोवृद्ध धनी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर श्मशान ले जाते समय रास्ते में पैसे बिखेरे जाते हैं, जिसे भिखारी उठाते हैं ।

आधेटा - घर से शमशान तक के बीच चौराहे पर बैकुंठी का दिशा परिवर्तन किया जाता है , इस प्रक्रिया को आधेटा कहा जाता है।

पिंडदान - शव को घर से श्मशान ले जाते समय प्रथम चौराहे पर पिंडदान किया जाता है। पिंडों जौ के आटे से बनाया जाता है और गाय को खिलाया जाता है।

अंत्येष्टि - शव को श्मशान में लकड़ी से बनाई चिता पर रखने के बाद मृतक का पुत्र चिता के चारों ओर परिक्रमा कर चिता को मुखाग्नि देता है ।

सातरवाड़ा - अंत्येष्टि के बाद दाह संस्कार में सम्मिलित होने वाले व्यक्ति कुए पर स्नान करके मृतक के घर जाते हैं और उनके परिवार वालों को ढाढस बनाते हैं ।

फूल चूनना - मृत्यु के तीसरे दिन मृतक के परिवार जन शमशान में जाकर मृतक की बिना जली हड्डियां एवं दाँत को इकट्ठा करते हैं तथा एक कपड़े की थैली में लपेटकर सुरक्षित रखते हैं । इसे फूल चूनना कहते हैं ।

तीया करना - मृत्यु के तीसरे दिन मँग व चावल आदि पकाकर आस पड़ोस के बच्चों को खिलाया जाता है । इसी दिन उठावने की बैठक की जाती है। श्मशान भूमि में घी-खाँड मिले मूग-चावल को कौओं को खिलाकर परिजन को नंगे पांव ही भेजा जाता है , इसे तीया की रस्म कहते हैं।

मौसर / मृत्यु भोज / नुक्ता /  खर्चा / बारहवां - मृत्यु के बारहवें  दिन ब्राह्मण से हवन करा कर अपने निकट संबंधियों को भोजन कराया जाता है इसे मौसर कहते हैं ।

जौसर -  राजस्थान में यदि कोई व्यक्ति अपने जीते जी अपना मृत्यु भोज दे देता है , तो उसे जौसर कहा जाता है ।

पगड़ी - मौसर के दिन ही शाम को मृतक के सबसे बड़े पुत्र को उसके उत्तराधिकारी के रूप में पगड़ी बांधी जाती है । पहले पगड़ी घर की ओर से, उसके बाद सगे संबंधियों की ओर से बांधी जाती है ।

श्राद्ध - जिस तिथि को संबंधित व्यक्ति की मृत्यु हुई थी ,आश्विन माह की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है । इस दिन मृतक के निकट संबंधी ब्राह्मण ,गाय, कन्याओं को भोजन करवाते हैं।


 अन्य रीति रिवाज 

जामणा - जामणा पुत्र जन्म पर नाई बालक के पगल्ये (सफेद वस्त्र पर हल्दी से अंकित पद चिन्ह्) लेकर उसके ननिहाल जाता है । तब उसके नाना या मामा उपहार स्वरूप वस्त्र, आभूषण ,मिठाई आदि लेकर आते हैं। जिसे जामणा कहा जाता है।

नांगल - नवनिर्मित गृह के उद्घाटन की रस्म नांगल कहलाती है । इसके अंतर्गत देवी देवताओं की पूजा करके अपने सगे संबंधियों को भोजन करवाया जाता है।

 

 प्रतियोगिता परीक्षाओं हेतु महत्वपूर्ण प्रश्न 

राजस्थान में पहली कुमकुम पत्रिका रणथम्भौर में स्थित गणेश जी को भेजने की प्रथा है ।

विवाह के 1 दिन पूर्व दिया जाने वाला सामूहिक प्रीतिभोज मांडा कहलाता है ।

जागीरदारों के घर में विवाह होने पर गांव वालों से वसूली जाने वाली लाग को बंदोली री लाग कहा जाता है।

 ब्राह्मण जाति में 8 वर्ष की आयु का होने पर बालक को गांठ लगे तीन धागे पहनाए जाते हैं ,जिसे जनेऊ कहा जाता है।

 हिंदू उत्तराधिकार कानून की आधारशिला व पोषक पगड़ी रस्म दस्तूर से जुड़ी अवधारणा है ।

आदिवासियों द्वारा किए जाने वाले मृत्यु भोज को लोकाई या कांदिया कहते हैं।

 जनजातियों में वर पक्ष द्वारा कन्या पक्ष को जो वधू मूल्य दिया जाता है उसे दापा कहते हैं ।

भील जाति में यदि पुरुष अपनी जाति के लोगों के सामने अपनी पत्नी की नई साड़ी के पल्ले में रुपया बांधकर उसे चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है, तो वह तलाक समझा जाता है इसे छेड़ा फाड़ना कहते हैं।

 हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार संपन्न कराए जाते हैं।

मृत्यु के बारहवें  दिन ब्राह्मण से हवन करा कर अपने निकट संबंधियों को भोजन कराया जाता है इसे मौसर कहते हैं ।

राजस्थान में यदि कोई व्यक्ति अपने जीते जी अपना मृत्यु भोज दे देता है , तो उसे जौसर कहा जाता है ।

विवाहिता अव्यस्क कन्या को व्यस्क होने पर उसे अपने ससुराल भेजना मुकलावा करना या गौना कहलाता है।

बारात विदा करते समय प्रत्येक बाराती तथा वर-वधू को यथाशक्ति धन व उपहार आदि दिए जाते हैं जिसे पहरावणी या रंगबरी कहते हैं ।

गर्भ में स्थित शिशु को पुत्र का रूप देने के लिए देवताओं की स्तुति कर पुत्र प्राप्ति की याचना करना पुंसवन संस्कार कहलाता है।


महत्त्वपूर्ण लिंक

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया - Rajasthan competition GK

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Important Industries of Rajasthan

राजस्थान के प्रमुख उद्योग

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