Rajasthan GK - राजस्थान में 1857 की क्रांति

 Revolt of 1857 in Rajasthan

 


 राजस्थान में 1857 की क्रांति


1857 की क्रांति - राजस्थान में  विद्रोह की तिथियां

नसीराबाद में विद्रोह                -  28 मई 1857 

भरतपुर में विद्रोह                   -  31 मई 1857 

नीमच में विद्रोह                     -  3 जून 1857

देवली में विद्रोह                     -  जून  1857 

टोंक में विद्रोह                       -  जून 1857  

अलवर में विद्रोह                   -  11 जुलाई 1857   

अजमेर कारागार में विद्रोह      -  9 अगस्त 1857  

एरिनपुरा में विद्रोह                 -  21 अगस्त 1857  

आऊवा में विद्रोह                  -  अगस्त 1857 

कोटा में विद्रोह                     -  15 अक्टूबर 1857   

धौलपुर में विद्रोह                  -  अक्टूबर 1857


राजस्थान में 1857 की क्रांति का घटनाक्रम

10 मई 1857 को मेरठ के सैनिकों ने सैनिक विद्रोह कर दिया ।राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 की क्रांति का सूत्रपात 28 मई 1857 को नसीराबाद (अजमेर) छावनी में हुआ। नसीराबाद में 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध झंडा खड़ा कर दिया। बाद में 30वीं नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया ।

नसीराबाद के विप्लव की सूचना नीमच सैनिक छावनी में पहुँची तो 3 जून 1857 की रात्रि को 11:00 बजे नीमच के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और छावनी को लूटने के बाद शाहपुरा होते हुए दिल्ली पहुंचे ।

21 अगस्त 1857 को जोधपुर में स्थित एरिनपुरा छावनी में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और 'चलो दिल्ली, मारो फिरंगी' के नारे लगाते हुए दिल्ली की ओर कूच किया।

इसी समय आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने विद्रोह कर दिया और जोधपुर महाराजा तख्त सिंह ने अनाड़ सिंह पवार के नेतृत्व में जोधपुर की भेजी सेना और कैप्टन हितकोट की सेना को आउवा के निकट बीथौड़ा (पाली) नामक स्थान पर 3 सितंबर 1857 को हराया।

 जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस अजमेर से सेना लेकर आउवा पहुंचा। 18 सितंबर 1857 को विद्रोहियों व जॉर्ज लॉरेंस की सेना के मध्य संघर्ष में लॉरेंस पराजित हुआ। मारवाड़ के पोलिटिकल एजेंट मेक मेसन का सर काट कर आउवा किले की दीवार पर लटका दिया गया। गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने पालनपुर से सेना बुलाकर इस क्रांति का दमन किया। इसे आउवा की क्रांति भी कहते हैं।

 15 अक्टूबर 1857  को कोटा में भी सैनिकों ने विद्रोह कर दिया । 15 अक्टूबर 1857 को रेजीडेंट  मेजर बर्टन और उसके दो पुत्र तथा चिकित्सक की हत्या कर दी । विद्रोहियों ने  मेजर बर्टन का सिर काट कर सारे शहर में घुमाया और पूरे शहर पर अपना अधिकार कर लिया  । 

अक्टूबर 1857 में ग्वालियर और इंदौर से विशाल संख्या में विद्रोही सैनिकों के जत्थों  ने धौलपुर राज्य में प्रवेश किया। सैनिकों व सरदारों ने धौलपुर लूट लिया एवं लगभग 2 महीने तक धौलपुर राज्य पर कब्जा बनाए रखा ।

भरतपुर की सेना ने 31 मई 1857 की क्रांति कर दी। भरतपुर राज्य में नियुक्त अंग्रेज अधिकारी मेजर मॉरीसन भरतपुर छोड़कर आगरा भाग गया।

 टोंक की सेनाओं ने भी मीर आलम खां के नेतृत्व में विद्रोहियों का साथ दिया। टोंक का नवाब अंग्रेजों के साथ था । मेजर ईडन के नेतृत्व में दिल्ली से बड़ी सेना के साथ टोंक आने पर विद्रोही यहां से पलायन कर गए।


 तात्या टोपे की भूमिका 

1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम में तांत्या टोपे का राजस्थान आगमन एक महत्वपूर्ण घटना है। 8 अगस्त 1857 को तांत्या टोपे अपने 8-9 हजार मराठा सैनिकों के साथ भीलवाड़ा पहुंचे, जहां उनका सामना कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्ट की सेना से हुआ। क्रांतिकारी अंग्रेज सेना के सामने नहीं टिक सके । 

तांत्या टोपे ने झालावाड़ में राणा पृथ्वी सिंह को हराकर उसकी सेना को अपने साथ कर लिया । तांत्या टोपे वहां से छोटा उदयपुर होता हुआ ग्वालियर चला गया। 

तांत्या टोपे दिसंबर 1857 में पुन: राजस्थान आया और उसने 11 दिसंबर को बांसवाड़ा को जीत लिया। फिर  तांत्या टोपे बांसवाड़ा से सलूंबर भिंडर होते हुए जनवरी 1858 में  टोंक पहुंचा।  अमीरगढ़ के किले के पास टोंक की सेना से युद्ध हुआ। जिसमें क्रांतिकारियों की विजय हुई । क्रांतिकारियों ने टोंक पर अपने शासन की घोषणा कर दी। इसकी सूचना मिलते ही मेजर ईडन एक बड़ी सेना लेकर टोंक  की ओर रवाना हुआ  । क्रांतिकारी सैनिक तांत्या टोपे को छोड़कर नाथद्वारा की ओर चले गए। तांत्या जंगलों में भटकता रहा। कहते हैं कि तांत्या टोपे को उनके एक सहयोगी मान सिंह नरूका ने धोखे से नरवर के जंगलों में अंग्रेजों को पकड़वा दिया था। अंततः 18 अप्रैल 1859 को उन्हें  सिप्री  में फांसी दे दी गई ।

राजस्थान में 1857 की क्रांति के नायक

नसीराबाद   -  15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिक तथा                        बाद में  30वीं नेटिव इन्फेंट्री

आऊवा      -   आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह

धौलपुर      -   राव राम चंद्र एवं हीरालाल

कोटा        -   मेहराब खान  तथा लाला जय दयाल

टोंक         -   मीर आलम खाँ


 महत्वपूर्ण तथ्य

 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी से राजस्थान में 1857 की क्रांति का सूत्रपात हुआ।

 1857 की क्रांति के समय राजस्थान का ए.जी.जी.  जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस  था। 

ए.जी.जी. का मुख्यालय अजमेर था।

धौलपुर पर लगभग 2 महीने तक सैनिकों व क्रांतिकारियों का कब्जा रहा।

आउवा में पोलिटिकल एजेंट मेसन का सर काट कर आउवा किले की दीवार पर लटका दिया गया।

कोटा में मेजर बर्टन और उसके दो पुत्र तथा चिकित्सक की हत्या कर दी गई।

मेजर बर्टन का सिर काट कर सारे शहर में घुमाया।

1857 की क्रांति के दौरान तांत्या टोपे दो बार राजस्थान आए ।

बीकानेर के शासक सरदार सिंह ने राज्य से बाहर जाकर भी अंग्रेजों की सहायता की।

क्रांति के समय बांसवाड़ा के महारावल लक्ष्मण सिंह को जंगलों में निवास करना पड़ा।

अजमेर में 9 अगस्त 1857 को केंद्रीय कारागृह में कैदियों ने बगावत कर दी और लगभग 50 कैदी जेल से भाग छूटे।

1857 की क्रांति में  गेराओ का जागीरदार भेरू सिंह जोधा आऊवा  के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।

गुल मोहम्मद - 1857 की क्रांति में कोटा राज्य की सेना का जमादार एवं विद्रोही नेता मेहराब खान का छोटा भाई ।ब्रिटिश सेना व कोटा महाराव की सेना के विरुद्ध अनेक युद्ध लड़े।

 गुल मोहम्मद (निशान्चि) हाफिज  - 1857 की क्रांति में  टोंक राज्य की सेना के बंदूकची, टोंक  से दिल्ली की ओर जाने वाली विद्रोही सेना के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लड़ा और दिल्ली में वीरगति को प्राप्त हुए।

 हरनाथ सिंह ठाकुर ने 1857 की क्रांति में जनरल लॉरेंस के विरुद्ध  आऊवा युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुए।

 हीरा सिंह - 1857 की क्रांति में विद्रोहियों के साथी हीरा सिंह ने कोटा राज्य में ब्रिटिश सेना और कोटा के महाराव की सेना के विरुद्ध अनेक युद्ध लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए ।

लाला जय दयाल भटनागर - 1857 की क्रांति में कोटा राज्य के विद्रोहियों का संगठन कर्ता और प्रमुख नेता । कोटा महारावल के द्वारा इनकी गिरफ्तारी के लिए ₹10000 की घोषणा । 1860 में अंग्रेजों द्वारा फांसी दी गई

1857 की क्रांति में अंग्रेजों व जोधपुर की संयुक्त सेना को पराजित करने वाले आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह थे।

राजस्थान में नसीराबाद, नीमच, देवली, एरिनपुरा, ब्यावर तथा खेरवाड़ा में 6 अंग्रेजी सेना की छावनियाँ थी। 

ब्यावर और खेरवाड़ा इन दो छावनियों ने विद्रोह में भाग नहीं लिया।

 राजस्थान में स्थित 6 सैनिक छावनियाँ

 नसीराबाद (अजमेर)

 नीमच

 देवली

 एरिनपुरा (जोधपुर) 

ब्यावर (अजमेर) 

खेरवाड़ा (उदयपुर)


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