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Rajasthan GK - राजस्थान के राजाओं के उपनाम व उपाधियां

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Titles and Nicknames of Kings of Rajasthan  राजस्थान के राजाओं के उपनाम एवं उपाधियाँ  मिहिर भोज - यह इतिहास में भोज प्रथम एवं आदि वराह के नाम से प्रसिद्ध है।   राव मालदेव -  फारसी इतिहासकार फरिश्ता ने राव मालदेव को हशमत वाला राजा कहा था। चारणों  ने राव मालदेव को हिंदू बादशाह कहा  है।   राव चंद्रसेन - मारवाड़ का प्रताप के उपनाम से प्रसिद्ध। राव उदय सिंह - राव चंद्रसेन के भाई । इन्हें मोटा राजा उदयसिंह के उपनाम से जाना जाता है । राव लूणकरण - यह अपनी  दान शीलता के कारण इतिहास में कलयुग के कर्ण  के नाम से विख्यात है। महाराजा रायसिंह - मुंशी देवी प्रसाद ने इनकी दानशील प्रवृत्ति के कारण इन्हें राजपूताने का कर्ण कहा। महाराजा कर्ण सिंह - बीकानेर के शासक ।  औरंगजेब ने इन्हें जांगलधर बादशाह की उपाधि से नवाजा।   महाराजा अनूप सिंह - इनकी दक्षिण में मराठों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से खुश होकर औरंगजेब ने इन्हें महाराजा एवं माही भरातिव  का खिताब देकर सम्मानित किया।   महाराजा सावंत सिंह - किशनगढ़ के शासक । यह नागरी दास के नाम से प्रसिद्ध हुए ।   विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) - विग्रहराज विद्

Rajasthan GK - राजस्थान में 1857 की क्रांति

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  Revolt of 1857 in Rajasthan     राजस्थान में 1857 की क्रांति 1857 की क्रांति - राजस्थान में  विद्रोह की तिथियां नसीराबाद में विद्रोह                -  28 मई 1857  भरतपुर में विद्रोह                   -  31 मई 1857  नीमच में विद्रोह                     -  3 जून 1857 देवली में विद्रोह                     -  जून  1857  टोंक में विद्रोह                       -  जून 1857   अलवर में विद्रोह                   -  11 जुलाई 1857    अजमेर कारागार में विद्रोह      -  9 अगस्त 1857   एरिनपुरा में विद्रोह                 -  21 अगस्त 1857   आऊवा में विद्रोह                  -  अगस्त 1857  कोटा में विद्रोह                     -  15 अक्टूबर 1857    धौलपुर में विद्रोह                  -  अक्टूबर 1857 राजस्थान में 1857 की क्रांति का घटनाक्रम 10 मई 1857 को मेरठ के सैनिकों ने सैनिक विद्रोह कर दिया ।राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 की क्रांति का सूत्रपात 28 मई 1857 को नसीराबाद (अजमेर) छावनी में हुआ। नसीराबाद में 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध झंडा खड़ा कर दिया। बाद में 30वी

Rajasthan GK-Traditions of Rajasthan

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  Traditions of Rajasthan      बाल विवाह      राजस्थान की प्रथाए    जौहर प्रथा   - युद्ध में जीत की आशा खत्म हो जाने पर शत्रु से अपने शील सतीत्व की रक्षा करने हेतु वीरांगनाए दुर्ग में प्रज्वलित अग्नि कुंड में कूदकर सामूहिक आत्मदाह कर लेती थी, जिसे जोहर करना कहा जाता था।   सती प्रथा -  पति की मृत्यु हो जाने पर पत्नी द्वारा उसके शव के साथ चिता में जलकर मृत्यु को वरण करना सती प्रथा कहलाती थी । इसे सहमरण,सहगमन या अन्वारोहण भी कहा जाता है। मध्यकाल में अपने सतीत्व व प्रतिष्ठा को सुरक्षित रखने हेतु यह प्रथा अधिक प्रचलन में आई। धीरे-धीरे इसने एक भयावह रूप धारण कर लिया तथा स्त्री की इच्छा के विपरीत परिवार की प्रतिष्ठा और मर्यादा बनाए रखने के लिए उसे जलती चिता में धकेला जाने लगा । राजस्थान में इस प्रथा का सर्वाधिक प्रचलन राजपूत जाति में था । मोहम्मद तुगलक पहला शासक था जिसने सती प्रथा पर रोक लगाने हेतु आदेश जारी किए थे।  राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई. में बूंदी में सती प्रथा को गैरकानूनी घोषित किया गया । बाद में राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से लॉर्ड विलियम  बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश

Rajasthan GK - राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज

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Important Rituals of Rajasthan        कांकन डोरा राजस्थान के प्रमुख रीति रिवाज   सोलह संस्कार   मानव शरीर को स्वस्थ दीर्घायु और मन को शुद्ध और अच्छे संस्कारों वाला बनाने के लिए गर्भाधान से लेकर अंत्येष्टि तक निम्नलिखित सोलह संस्कार अनिवार्य माने गए हैं -  गर्भाधान - गर्भाधान के पूर्व उचित काल और आवश्यक धार्मिक क्रियाएं । पुंसवन - गर्भ में स्थित शिशु को पुत्र का रूप देने के लिए देवताओं की स्तुति कर पुत्र प्राप्ति की याचना करना पुंसवन संस्कार कहलाता है। सीमंतोन्नयन - गर्भवती स्त्री को मंगलकारी शक्तियों से बचाने के लिए किया जाने वाला संस्कार सीमंतोन्नयन संस्कार कहलाता है। जात कर्म - बालक के जन्म पर किया जाने वाला संस्कार जात कर्म कहलाता है। नामकरण - शिशु का नाम रखने के लिए जन्म के 10वें अथवा 12वें दिन किया जाने वाला संस्कार नामकरण संस्कार कहलाता है। निष्क्रमण - जन्म के चौथे मास में बालक को पहली बार घर से निकाल कर सूर्य और चंद्र के दर्शन कराना निष्क्रमण कहलाता है। अन्नप्राशन - जन्म के छठे मास में बालक को पहली बार अन्न का आहार देने की क्रिया अन्नप्राशन कहलाती है । चूड़ाकर्म - शिशु के पह