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Rajasthan GK - राजस्थान के राजवंश एवं उनके संस्थापक

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Different Princely States of Rajasthan       Rajasthan GK  राजस्थान के विभिन्न राजवंश एवं उनके संस्थापक रणथंभौर में चौहान वंश की स्थापना गोविंद राज ने 1194 ईस्वी में की। शाकंभरी के चौहान वंश की नींव डालने वाला शासक वासुदेव चौहान 551 ईसवी था। सिरोही में चौहानों की देवड़ा शाखा का शासन था, जिसकी स्थापना 1131 में लुंबा द्वारा की गई थी तथा राजधानी चंद्रावती को बनाया। जालौर के चौहान वंश की स्थापना कीर्तिपाल चौहान ने की।  हाडोती के चौहान वंश की स्थापना 1342 ईस्वी में हाड़ा चौहान देवा ने मीणो को पराजित कर की।  नाडोल में चौहान वंश की स्थापना शाकंभरी नरेश वाकपति के पुत्र लक्ष्मण चौहान ने 960 ईसवी में की। मेवाड़ में गुहिल वंश की नींव डालने वाला शासक गुहादित्य (गुहिल) 566 ईसवी था। चित्तौड़ में 1326 ईस्वी में सिसोदिया वंश की नींव डालने वाला शासक राणा हम्मीर था। कछवाहा वंश का राज्य स्थापित करने वाले दूल्हेराय थे। इनकी प्रथम राजधानी दौसा  थी। दूल्हा राय के पुत्र कोकिल देव ने 1207 में आमेर के मीणाओं को परास्त कर आमेर को अपने राज्य में मिला लिया तभी से आमेर कछवाहा की राजधानी  बनी।  मारवाड़ में राठौड़ व

Rajasthan GK - राजस्थान का इतिहास जानने के स्रोत

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Sources of Rajasthan History      Coins of Jaisalmer state राजस्थान का इतिहास जानने के स्रोत राजस्थान के इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत पुरातात्विक सामग्री , ऐतिहासिक ग्रंथ , प्रशस्तियाँ,  यात्रियों का वर्णन एवं पुरालेख आदि हैं ।   पुरातात्विक सामग्री पुरातत्व संबंधी सामग्री सबसे अधिक विश्वस्त है ।मूक होते हुए भी इसमें ऐसे अच्छे  ऐतिहासिक तत्व निहित है जो प्रामाणिक होते हैं ।  खोजो एवं उत्खनन से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री यथा - भग्नावशेष, खनन से प्राप्त सामग्री, सिक्के, गुहालेख , शिलालेख तथा ताम्रपत्र आदि पुरातात्विक सामग्री में सम्मिलित किए जाते हैं । महत्वपूर्ण शिलालेख / प्रशस्तियाँ -  कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति समय - 1460  स्थान - चित्तौड़गढ़  रचयिता - अत्रि इसमें मेवाड़ के महाराणाओं की वंशावली की जानकारी मिलती है। यह प्रशस्ति 15वीं सदी की राजस्थान की राजनीतिक , धार्मिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति को समझने के लिए बहुत उपयोगी है।   राज प्रशस्ति  समय - 1676 ईस्वी  स्थान - राजसमंद  यह राजस्थान का सबसे बड़ा शिलालेख है । राजसमंद झील की नौ चोकी पाल की ताकों  में लगे 25 काले पत्थरों पर स

Rajasthan GK - राजस्थान के राजाओं के उपनाम व उपाधियां

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Titles and Nicknames of Kings of Rajasthan  राजस्थान के राजाओं के उपनाम एवं उपाधियाँ  मिहिर भोज - यह इतिहास में भोज प्रथम एवं आदि वराह के नाम से प्रसिद्ध है।   राव मालदेव -  फारसी इतिहासकार फरिश्ता ने राव मालदेव को हशमत वाला राजा कहा था। चारणों  ने राव मालदेव को हिंदू बादशाह कहा  है।   राव चंद्रसेन - मारवाड़ का प्रताप के उपनाम से प्रसिद्ध। राव उदय सिंह - राव चंद्रसेन के भाई । इन्हें मोटा राजा उदयसिंह के उपनाम से जाना जाता है । राव लूणकरण - यह अपनी  दान शीलता के कारण इतिहास में कलयुग के कर्ण  के नाम से विख्यात है। महाराजा रायसिंह - मुंशी देवी प्रसाद ने इनकी दानशील प्रवृत्ति के कारण इन्हें राजपूताने का कर्ण कहा। महाराजा कर्ण सिंह - बीकानेर के शासक ।  औरंगजेब ने इन्हें जांगलधर बादशाह की उपाधि से नवाजा।   महाराजा अनूप सिंह - इनकी दक्षिण में मराठों के विरुद्ध की गई कार्रवाई से खुश होकर औरंगजेब ने इन्हें महाराजा एवं माही भरातिव  का खिताब देकर सम्मानित किया।   महाराजा सावंत सिंह - किशनगढ़ के शासक । यह नागरी दास के नाम से प्रसिद्ध हुए ।   विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) - विग्रहराज विद्

Rajasthan GK - राजस्थान में 1857 की क्रांति

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  Revolt of 1857 in Rajasthan     राजस्थान में 1857 की क्रांति 1857 की क्रांति - राजस्थान में  विद्रोह की तिथियां नसीराबाद में विद्रोह                -  28 मई 1857  भरतपुर में विद्रोह                   -  31 मई 1857  नीमच में विद्रोह                     -  3 जून 1857 देवली में विद्रोह                     -  जून  1857  टोंक में विद्रोह                       -  जून 1857   अलवर में विद्रोह                   -  11 जुलाई 1857    अजमेर कारागार में विद्रोह      -  9 अगस्त 1857   एरिनपुरा में विद्रोह                 -  21 अगस्त 1857   आऊवा में विद्रोह                  -  अगस्त 1857  कोटा में विद्रोह                     -  15 अक्टूबर 1857    धौलपुर में विद्रोह                  -  अक्टूबर 1857 राजस्थान में 1857 की क्रांति का घटनाक्रम 10 मई 1857 को मेरठ के सैनिकों ने सैनिक विद्रोह कर दिया ।राजस्थान में सर्वप्रथम 1857 की क्रांति का सूत्रपात 28 मई 1857 को नसीराबाद (अजमेर) छावनी में हुआ। नसीराबाद में 15वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सैनिकों ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध झंडा खड़ा कर दिया। बाद में 30वी